वेदाबेस​

श्लोक 16.13 - 15


असौ मया हत: शत्रुर्हनिष्ये चापरानपि ।
ईश्वरोऽहमहं भोगी सिद्धोऽहं बलवान्सुखी ॥ १४ ॥

असौ मया हत: शत्रुर्हनिष्ये चापरानपि ।
ईश्वरोऽहमहं भोगी सिद्धोऽहं बलवान्सुखी ॥ १४ ॥

आढ्योऽभिजनवानस्मि कोऽन्योऽस्ति सदृशो मया ।
यक्ष्ये दास्यामि मोदिष्य इत्यज्ञानविमोहिता: ॥ १५ ॥

idam — this; adya — today; mayā — by me; labdham — gained; imam — this; prāpsye — I shall gain; manaḥ-ratham — according to my desires; idam — this; asti — there is; idam — this; api — also; me — mine; bhaviṣyati — it will increase in the future; punaḥ — again; dhanam — wealth; asau — that; mayā — by me; hataḥ — has been killed; śatruḥ — enemy; haniṣye — I shall kill; ca — also; aparān — others; api — certainly; īśvaraḥ — the lord; aham — I am; aham — I am; bhogī — the enjoyer; siddhaḥ — perfect; aham — I am; bala-vān — powerful; sukhī — happy; āḍhyaḥ — wealthy; abhijana-vān — surrounded by aristocratic relatives; asmi — I am; kaḥ — who; anyaḥ — other; asti — there is; sadṛśaḥ — like; mayā — me; yakṣye — I shall sacrifice; dāsyāmi — I shall give charity; modiṣye — I shall rejoice; iti — thus; ajñāna — by ignorance; vimohitāḥ — deluded.

भावार्थ

आसुरी व्यक्ति सोचता है, आज मेरे पास इतना धन है और अपनी योजनाओं से मैं और अधिक धन कमाऊँगा | इस समय मेरे पास इतना है किन्तु भविष्य में यह बढ़कर और अधिक हो जायेगा | वह मेरा शत्रु है और मैंने उसे मार दिया है और मेरे अन्य शत्रु भी मार दिये जाएंगे | मैं सभी वस्तुओं का स्वामी हूँ | मैं भोक्ता हूँ | मैं सिद्ध, शक्तिमान् तथा सुखी हूँ | मैं सबसे धनी व्यक्ति हूँ और मेरे आसपास मेरे कुलीन सम्बन्धी हैं | कोई अन्य मेरे समान शक्तिमान तथा सुखी नहीं है | मैं यज्ञ करूँगा, दान दूँगा और इस तरह आनन्द मनाऊँगा | इस प्रकार ऐसे व्यक्ति अज्ञानवश मोहग्रस्त होते रहते हैं |

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