श्लोक 11 . 6
बहून्यदृष्टपूर्वाणि पश्याश्चर्याणि भारत ॥ ६ ॥
पश्य - देखो; आदित्यान् - अदिति के बारहों पुत्रों को; वसून्- आठों वसुओं को; रुद्रान् - रूद्र के ग्यारह रूपों को; अश्र्विनौ- दो अश्र्विनी कुमारों को; मरुतः- उञ्चासों मरुतों को; तथा - भी;बहूनि- अनेक;अदृष्ट- देखे हुए; पुर्वाणि - पहले, इसके पूर्व, पश्य -देखो,आश्र्चर्याणि- समस्त आश्चर्यों को; भारत - हे भरतवंशियों में श्रेष्ठ ।
भावार्थ
हे भारत! लो, तुम आदित्यों, वसुओं, रुद्रों, अश्र्विनीकुमारों तथा अन्य देवताओं के विभिन्न रूपों को यहाँ देखो । तुम ऐसे अनेक आश्चर्यमय रूपों को देखो, जिन्हें पहले किसी ने न तो कभी देखा है, न सुना है ।
तात्पर्य
यद्यपि अर्जुन कृष्ण का अन्तरंग सखा तथा अत्यन्त विद्वान था, तो भी वह उनके विषय सबकुछ नहीं जानता था । यहाँ पर यह कहा गया है कि इन समस्त रूपों को न तो मनुष्य पूर्व देखा है, न सुना है । अब कृष्ण इन आश्चर्यमय रूपों को प्रकट कर रहे हैं ।
बेस- पूरे विश्व में वैदिक संस्कृति सिखाने का लक्ष्य
©2020 BACE-भक्तिवेदांत सांस्कृतिक और शैक्षणिक संस्था
www.vedabace.com यह वैदिक ज्ञान की विस्तृत जानकारी है जो दैनिक साधना, अध्ययन और संशोधन में उपयोगी हो सकती है।
अधिक जानकारी के लिए कृपया संपर्क करें - info@vedabace.com