वेदाबेस​

श्लोक 11 . 7

इहैकस्थं जगत्कृत्स्नं पश्याद्य सचराचरम् ।
मम देहे गुडाकेश यच्च‍ान्यद्‍द्रष्टुमिच्छसि ॥ ७ ॥

इह - इसमें; एक-स्थम् - एक स्थान में; जगत् - ब्रह्माण्ड; कृत्स्नम् - पूर्णतया; पश्य - देखो; अद्य - तुरन्त; स - सहित; चर - जंगम; अचरम् - तथा अचर, जड़; मम - मेरे; देहे - शरीर में; गुडाकेश - हे अर्जुन; यत् - जो; च - भी; अन्यत् - अन्य, और; द्रष्टुम् - देखना; इच्छसि - चाहते हो ।

भावार्थ

हे अर्जुन! तुम जो भी देखना चाहो, उसेतत्क्षण मेरे इस शरीर में देखो । तुम इस समय तथा भविष्य में भी जो भी देखना चाहते हो, उसको यह विश्र्व रूप दिखाने वाला है । यहाँ एक ही स्थान पर चर-अचर सब कुछ है ।

तात्पर्य

कोई भी व्यक्ति एक स्थान में बैठे-बैठे सारा विश्र्व नहीं देख सकता । यहाँ तक कि बड़े से बड़ा वैज्ञानिक भी यह नहीं देख सकता कि ब्रह्माण्ड के अन्य भागों में क्या हो रहा है । किन्तु अर्जुन जैसा भक्त यह देख सकता है कि सारी वस्तुएँ जगत् में कहाँ-कहाँ स्थित हैं । कृष्ण उसे शक्ति प्रदान करते हैं, जिससे वह भूत, वर्तमान तथा भविष्य, जो कुछ देखना चाहे, देख सकता है । इस तरह अर्जुन कृष्ण के अनुग्रह से सारी वस्तुएँ देखने में समर्थ है ।

बेस- पूरे विश्व में वैदिक संस्कृति सिखाने का लक्ष्य

©2020 BACE-भक्तिवेदांत सांस्कृतिक और शैक्षणिक संस्था

www.vedabace.com यह वैदिक ज्ञान की विस्तृत जानकारी है जो दैनिक साधना, अध्ययन और संशोधन में उपयोगी हो सकती है।

अधिक जानकारी के लिए कृपया संपर्क करें - info@vedabace.com