SB 10.72.20
योऽनित्येन शरीरेण सतां गेयं यशो ध्रुवम् ।
नाचिनोति स्वयं कल्प: स वाच्य: शोच्य एव स: ॥ २० ॥
नाचिनोति स्वयं कल्प: स वाच्य: शोच्य एव स: ॥ २० ॥
भावार्थ
He indeed is to be censured and pitied who, though able to do so, fails to achieve with his temporary body the lasting fame glorified by great saints.
बेस- पूरे विश्व में वैदिक संस्कृति सिखाने का लक्ष्य
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