SB 10.67.4
क्वचित्स शैलानुत्पाट्य तैर्देशान् समचूर्णयत् ।
आनर्तान् सुतरामेव यत्रास्ते मित्रहा हरि: ॥ ४ ॥
आनर्तान् सुतरामेव यत्रास्ते मित्रहा हरि: ॥ ४ ॥
kvacit — once; सः — he, Dvivida; śailān — mountains; utpāṭya — tearing up; taiḥ — with them; deśān — all the kingdoms; samacūrṇayat — he devastated; ānartān — the province of the Ānarta people (in which Dvārakā is situated); sutarām eva — especially; yatra — where; āste — is present; mitra — of his friend; hā — the killer; hariḥ — Kṛṣṇa.
भावार्थ
Once Dvivida tore up a number of mountains and used them to devastate all the neighboring kingdoms, especially the province of Ānarta, wherein dwelt his friend’s killer, Lord Hari.
बेस- पूरे विश्व में वैदिक संस्कृति सिखाने का लक्ष्य
©2020 BACE-भक्तिवेदांत सांस्कृतिक और शैक्षणिक संस्था
www.vedabace.com यह वैदिक ज्ञान की विस्तृत जानकारी है जो दैनिक साधना, अध्ययन और संशोधन में उपयोगी हो सकती है।
अधिक जानकारी के लिए कृपया संपर्क करें - info@vedabace.com