वेदाबेस​

SB 10.58.35

स कोशलपति: प्रीत: प्रत्युत्थानासनादिभि: ।
अर्हणेनापि गुरुणा पूजयन् प्रतिनन्दित: ॥ ३५ ॥

सः — he; kośala-patiḥ — the lord of Kośala; prītaḥ — pleased; pratyutthāna — by standing up; āsana — offering a seat; ādibhiḥ — and so on; arhaṇena — and with offerings; अपि — also; guruṇā — substantial; pūjayan — worshiping; pratinanditaḥ — was greeted in return.

भावार्थ

The King of Kośala, pleased to see Lord Kṛṣṇa, worshiped Him by rising from his throne and offering Him a seat of honor and substantial gifts. Lord Kṛṣṇa also greeted the King respectfully.

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