वेदाबेस​

SB 10.56.39

स चातिव्रीडितो रत्नं गृहीत्वावाङ्‍मुखस्तत: ।
अनुतप्यमानो भवनमगमत् स्वेन पाप्मना ॥ ३९ ॥

सः — he, Satrājit; ca — and; ati — extremely; vrīḍitaḥ — ashamed; ratnam — the gem; gṛhītvā — taking; avāk — downward; mukhaḥ — his face; tataḥ — from there; anutapyamānaḥ — feeling remorse; bhavanam — to his home; agamat — went; svena — with his own; pāpmanā — sinful behavior.

भावार्थ

Hanging his head in great shame, Satrājit took the gem and returned home, all the while feeling remorse for his sinful behavior.

बेस- पूरे विश्व में वैदिक संस्कृति सिखाने का लक्ष्य

©2020 BACE-भक्तिवेदांत सांस्कृतिक और शैक्षणिक संस्था

www.vedabace.com यह वैदिक ज्ञान की विस्तृत जानकारी है जो दैनिक साधना, अध्ययन और संशोधन में उपयोगी हो सकती है।

अधिक जानकारी के लिए कृपया संपर्क करें - info@vedabace.com