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SB 10.55.39

नष्टं प्रद्युम्नमायातमाकर्ण्य द्वारकौकस: ।
अहो मृत इवायातो बालो दिष्‍ट्येति हाब्रुवन् ॥ ३९ ॥

naṣṭam — lost; pradyumnam — Pradyumna; āyātam — returned; ākarṇya — hearing; dvārakā-okasaḥ — the residents of Dvārakā; aho — aḥ; mṛtaḥ — dead; iva — as if; āyātaḥ — come back; bālaḥ — the child; diṣṭyā — by the favor of providence; iti — thus; ha — indeed; abruvan — they spoke.

भावार्थ

Hearing that lost Pradyumna had come home, the residents of Dvārakā declared, “Ah, providence has allowed this child to return as if from death!”

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