SB 10.55.33
कथं त्वनेन सम्प्राप्तं सारूप्यं शार्ङ्गधन्वन: ।
आकृत्यावयवैर्गत्या स्वरहासावलोकनै: ॥ ३३ ॥
आकृत्यावयवैर्गत्या स्वरहासावलोकनै: ॥ ३३ ॥
katham — how; tu — but; anena — by Him; samprāptam — obtained; sārūpyam — the same appearance; śārṅga-dhanvanaḥ — as Kṛṣṇa, the wielder of the Śārṅga bow; ākṛtyā — in bodily form; avayavaiḥ — limbs; gatyā — gait; svara — tone of voice; hāsa — smile; avalokanaiḥ — and glance.
भावार्थ
But how is it that this young man so much resembles my own Lord, Kṛṣṇa, the wielder of Śārṅga, in His bodily form and His limbs, in His gait and the tone of His voice, and in His smiling glance?
बेस- पूरे विश्व में वैदिक संस्कृति सिखाने का लक्ष्य
©2020 BACE-भक्तिवेदांत सांस्कृतिक और शैक्षणिक संस्था
www.vedabace.com यह वैदिक ज्ञान की विस्तृत जानकारी है जो दैनिक साधना, अध्ययन और संशोधन में उपयोगी हो सकती है।
अधिक जानकारी के लिए कृपया संपर्क करें - info@vedabace.com