SB 10.51.10
नन्वसौ दूरमानीय शेते मामिह साधुवत् ।
इति मत्वाच्युतं मूढस्तं पदा समताडयत् ॥ १० ॥
इति मत्वाच्युतं मूढस्तं पदा समताडयत् ॥ १० ॥
nanu — is it so; asau — He; dūram — a long distance; ānīya — bringing; śete — is lying down; mām — me; iha — here; sādhu-vat — like a saintly person; iti — so; matvā — thinking (him); acyutam — (to be) Lord Kṛṣṇa; mūḍhaḥ — deluded; tam — him; padā — with his foot; samatāḍayat — struck with full force.
भावार्थ
“So, after leading me such a long distance, now He is lying here like some saint!” Thus thinking the sleeping man to be Lord Kṛṣṇa, the deluded fool kicked him with all his strength.
बेस- पूरे विश्व में वैदिक संस्कृति सिखाने का लक्ष्य
©2020 BACE-भक्तिवेदांत सांस्कृतिक और शैक्षणिक संस्था
www.vedabace.com यह वैदिक ज्ञान की विस्तृत जानकारी है जो दैनिक साधना, अध्ययन और संशोधन में उपयोगी हो सकती है।
अधिक जानकारी के लिए कृपया संपर्क करें - info@vedabace.com