SB 10.50.10
अन्योऽपि धर्मरक्षायै देह: संभ्रियते मया ।
विरामायाप्यधर्मस्य काले प्रभवत: क्वचित् ॥ १० ॥
विरामायाप्यधर्मस्य काले प्रभवत: क्वचित् ॥ १० ॥
भावार्थ
I also assume other bodies to protect religion and to end irreligion whenever it flourishes in the course of time.
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