वेदाबेस​

SB 10.46.37

न ह्यस्यास्ति प्रिय: कश्चिन्नाप्रियो वास्त्यमानिन: ।
नोत्तमो नाधमो वापि समानस्यासमोऽपि वा ॥ ३७ ॥

na — not; hi — indeed; asya — for Him; asti — there is; priyaḥ — dear; kaścit — anyone; na — not; apriyaḥ — not dear; vā — or; asti — there is; amāninaḥ — who is free from desire for respect; na — not; uttamaḥ — superior; na — not; adhamaḥ — inferior; vā — or; अपि — also; samānasya — for Him who has all respect for others; āsamaḥ — completely ordinary; अपि — also; vā — or.

भावार्थ

For Him no one is especially dear or despicable, superior or inferior, and yet He is not indifferent to anyone. He is free from all desire for respect and yet gives respect to all others.

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