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SB 10.34.25

एवं विक्रीडतो: स्वैरं गायतो: सम्प्रमत्तवत् ।
शङ्खचूड इति ख्यातो धनदानुचरोऽभ्यगात् ॥ २५ ॥

evam — thus; vikrīḍatoḥ — as the two of Them were playing; svairam — as They desired; gāyatoḥ — singing; sampramatta — to the point of intoxication; vat — as if; śaṅkhacūḍaḥ — Śaṅkhacūḍa; iti — thus; khyātaḥ — named; dhana-da — of the treasurer of the demigods, Lord Kuvera; anucaraḥ — a servant; abhyagāt — arrived.

भावार्थ

While Lord Kṛṣṇa and Lord Balarāma thus played according to Their own sweet will and sang to the point of apparent intoxication, a servant of Kuvera named Śaṅkhacūḍa came upon the scene.

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