SB 10.30.37
ततो गत्वा वनोद्देशं दृप्ता केशवमब्रवीत् ।
न पारयेऽहं चलितुं नय मां यत्र ते मन: ॥ ३७ ॥
न पारयेऽहं चलितुं नय मां यत्र ते मन: ॥ ३७ ॥
tataḥ — then; gatvā — going; vana — of the forest; uddeśam — to one region; dṛptā — becoming proud; keśavam — to Kṛṣṇa; abravīt — She said; na pāraye — am not able; aham — I; calitum — to move; naya — bring; mām — Me; yatra — where; te — Your; manaḥ — mind.
भावार्थ
As the two lovers passed through one part of the Vṛndāvana forest, the special gopī began feeling proud of Herself. She told Lord Keśava, “I cannot walk any further. Please carry Me wherever You want to go.”
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