ŚB 1.14.16
वायुर्वाति खरस्पर्शो रजसा विसृजंस्तम: ।
असृग् वर्षन्ति जलदा बीभत्समिव सर्वत: ॥ १६ ॥
असृग् वर्षन्ति जलदा बीभत्समिव सर्वत: ॥ १६ ॥
vāyuḥ — wind; vāti — blowing; khara-sparśaḥ — sharply; rajasā — by the dust; visṛjan — creating; tamaḥ — darkness; asṛk — blood; varṣanti — are raining; jaladāḥ — the clouds; bībhatsam — disastrous; iva — like; sarvataḥ — everywhere.
भावार्थ
The wind blows violently, blasting dust everywhere and creating darkness. Clouds are raining everywhere with bloody disasters.
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