वेदाबेस​

श्लोक 9 . 32

मां हि पार्थ व्यपाश्रित्य येऽपि स्यु: पापयोनय: ।
स्त्रियो वैश्यास्तथा श‍ूद्रास्तेऽपि यान्ति परां गतिम् ॥ ३२ ॥

mām — of Me; hi — certainly; pārtha — O son of Pṛthā; vyapāśritya — particularly taking shelter; ye — those who; api — also; syuḥ — are; pāpa-yonayaḥ — born of a lower family; striyaḥ — women; vaiśyāḥ — mercantile people; tathā — also; śūdrāḥ — lower-class men; te api — even they; yānti — go; parām — to the supreme; gatim — destination.

भावार्थ

हे पार्थ! जो लोग मेरी शरण ग्रहण करते हैं, वे भले ही निम्नजन्मा स्त्री, वैश्य (व्यापारी) तथा शुद्र (श्रमिक) क्यों न हों, वे परमधाम को प्राप्त करते हैं |

तात्पर्य

यहाँ पर भगवान् ने स्पष्ट कहा है कि भक्ति में उच्च तथा निम्न जाती के लोगों का भेद नहीं होता | भौतिक जीवन में ऐसा विभाजन होता है, किन्तु भगवान् की दिव्य भक्ति में लगे व्यक्ति पर यह लागू नहीं होता | सभी परमधाम के अधिकारी हैं | श्रीमद्भागवत में (२.४.१८) कथन है कि अधम योनी चाण्डाल भी शुद्ध भक्त के संसर्ग से शुद्ध हो जाते हैं | अतः भक्ति तथा शुद्ध भक्त द्वारा पथप्रदर्शन इतने प्रबल हैं कि वहाँ ऊँचनीच का भेद नहीं रह जाता और कोई भी इसे ग्रहण कर सकता है | शुद्ध भक्त की शरण ग्रहण करके सामान्य से सामान्य व्यक्ति शुद्ध हो सकता है | प्रकृति के विभिन्न गुणों के अनुसार मनुष्यों को सात्त्विक (ब्राह्मण), रजोगुणी (क्षत्रिय) तथा तामसी (वैश्य तथा शुद्र) कहा जाता है | इनसे भी निम्न पुरुष चाण्डाल कहलाते हैं और वे पापी कुलों में जन्म लेते हैं | सामान्य रूप से उच्चकुल वाले इन निम्नकुल में जन्म लेने वालों की संगति नहि८न करते | किन्तु भक्तियोग इतना प्रबल होता है कि भगवद्भक्त समस्त निम्नकुल वाले व्यक्तियों को जीवन की परं सिद्धि प्राप्त करा सकते हैं | यह तभी सम्भव है जब कोई कृष्ण की शरण में जाये | जैसा कि व्यपाश्रित्य शब्द से सूचित है, मनुष्य को पूर्णतया कृष्ण की शरण ग्रहण करनी चाहिए | तब वह बड़े से बड़े ज्ञानी तथा योगी से भी महान बन सकता है |

बेस- पूरे विश्व में वैदिक संस्कृति सिखाने का लक्ष्य

©2020 BACE-भक्तिवेदांत सांस्कृतिक और शैक्षणिक संस्था

www.vedabace.com यह वैदिक ज्ञान की विस्तृत जानकारी है जो दैनिक साधना, अध्ययन और संशोधन में उपयोगी हो सकती है।

अधिक जानकारी के लिए कृपया संपर्क करें - info@vedabace.com