वेदाबेस​

श्लोक 8 . 20

परस्तस्मात्तु भावोऽन्योऽव्यक्तोऽव्यक्तात्सनातन: ।
य: स सर्वेषु भूतेषु नश्यत्सु न विनश्यति ॥ २० ॥

paraḥ — transcendental; tasmāt — to that; tu — but; bhāvaḥ — nature; anyaḥ — another; avyaktaḥ — unmanifest; avyaktāt — to the unmanifest; sanātanaḥ — eternal; yaḥ saḥ — that which; sarveṣu — all; bhūteṣu — manifestation; naśyatsu — being annihilated; na — never; vinaśyati — is annihilated.

भावार्थ

इसके अतिरिक्त एक अन्य अव्यय प्रकृति है, जो शाश्र्वत है और इस व्यक्त तथा अव्यक्त पदार्थ से परे है | यह परा (श्रेष्ठ) और कभी न नाश होने वाली है | जब इस संसार का सब कुछ लय हो जाता है, तब भी उसका नाश नहीं होता |

तात्पर्य

कृष्ण की पराशक्ति दिव्य और शाश्र्वत है | यह उस भौतिक प्रकृति के समस्त परिवर्तनों से परे है, जो ब्रह्मा के दिन के समय व्यक्त और रात्रि के समय विनष्ट होती रहती है | कृष्ण की पराशक्ति भौतिक प्रकृति के गुण से सर्वथा विपरीत है | परा तथा अपरा प्रकृति की व्याख्या सातवें अध्याय में हुई है |

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