वेदाबेस​

श्लोक 6 . 9

सुहृन्मित्रार्युदासीनमध्यस्थद्वेष्यबन्धुषु ।
साधुष्वपि च पापेषु समबुद्धिर्विशिष्यते ॥ ९ ॥

su-hṛt — to well-wishers by nature; mitra — benefactors with affection; ari — enemies; udāsīna — neutrals between belligerents; madhya-stha — mediators between belligerents; dveṣya — the envious; bandhuṣu — and the relatives or well-wishers; sādhuṣu — unto the pious; अपि — as well as; ca — and; pāpeṣu — unto the sinners; sama-buddhiḥ — having equal intelligence; viśiṣyate — is far advanced.

भावार्थ

जब मनुष्य निष्कपट हितैषियों, प्रिय मित्रों, तटस्थों, मध्यस्थों, ईर्ष्यालुओं, शत्रुओं तथा मित्रों, पुण्यात्माओं एवं पापियों को समान भाव से देखता है, तो वह और भी उन्नत माना जाता है |

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