वेदाबेस​

श्लोक 2 . 19

य एनं वेत्ति हन्तारं यश्चैनं मन्यते हतम् ।
उभौ तौ न विजानीतो नायं हन्ति न हन्यते ॥ १९ ॥

yaḥ — anyone who; enam — this; vetti — knows; hantāram — the killer; yaḥ — anyone who; ca — also; enam — this; manyate — thinks; hatam — killed; ubhau — both; tau — they; na — never; vijānītaḥ — are in knowledge; na — never; ayam — this; hanti — kills; na — nor; hanyate — is killed.

भावार्थ

जो इस जीवात्मा को मारने वाला समझता है तथा जो इसे मरा हुआ समझता है, वे दोनों ही अज्ञानी हैं, क्योंकि आत्मा न तो मरता है और न मारा जाता है |

तात्पर्य

जब देहधारी जीव को किसी घातक हथियार से आघात पहुँचाया जाता है तो यह समझ लेना चाहिए कि शरीर के भीतर जीवात्मा मरा नहीं | आत्मा इतना सूक्ष्म है कि इसे किसी तरह के भौतिक हथियार से मार पाना असम्भव है, जैसा कि अगले श्लोकों से स्पष्ट हो जायेगा | न ही जीवात्मा अपने आध्यात्मिक स्वरूप के कारण वध्य है | जिसे मारा जाता है या जिसे मरा हुआ समझा जाता है वह केवल शरीर होता है | किन्तु इसका तात्पर्य शरीर के वध को प्रोत्साहित करना नहीं है | वैदिक आदेश है – मा हिंस्यात् सर्वा भूतानि – किसी भी जीव की हिंसा न करो | न ही ‘जीवात्मा अवध्य है’ का अर्थ यह है कि पशु-हिंसा को प्रोत्साहन दिया जाय | किसी भी जीव के शरीर की अनधिकार हत्या करना निंद्य है और राज्य तथा भगवद्विधान के द्वारा दण्डनीय है | किन्तु अर्जुन को तो धर्म के नियमानुसार मारने के लिए नियुक्त किया जा रहा था, किसी पागलपनवश नहीं |

बेस- पूरे विश्व में वैदिक संस्कृति सिखाने का लक्ष्य

©2020 BACE-भक्तिवेदांत सांस्कृतिक और शैक्षणिक संस्था

www.vedabace.com यह वैदिक ज्ञान की विस्तृत जानकारी है जो दैनिक साधना, अध्ययन और संशोधन में उपयोगी हो सकती है।

अधिक जानकारी के लिए कृपया संपर्क करें - info@vedabace.com