वेदाबेस​

श्लोक 14.19

नान्यं गुणेभ्य: कर्तारं यदा द्रष्टानुपश्यति ।
गुणेभ्यश्च परं वेत्ति मद्भ‍ावं सोऽधिगच्छति ॥ १९ ॥

na — no; anyam — other; guṇebhyaḥ — than the qualities; kartāram — performer; yadā — when; draṣṭā — a seer; anupaśyati — sees properly; guṇebhyaḥ — to the modes of nature; ca — and; param — transcendental; vetti — knows; matbhāvam — to My spiritual nature; saḥ — he; adhigacchati — is promoted.

भावार्थ

जब कोई यह अच्छी तरह जान लेता है कि समस्त कार्यों में प्रकृति के तीनों गुणों के अतिरिक्त अन्य कोई करता नहीं है और जब वह परमेश्र्वर को जान लेता है, जो इन तीनों गुणों से परे है, तो वह मेरे दिव्य स्वभाव को प्राप्त होता है |

तात्पर्य

समुचित महापुरुषों से केवल समझकर तथा समुचित ढंग से सीख कर मनुष्य प्रकृति के गुणों के सारे कार्यकलापों को लाँघ सकता है | वास्तविक गुरु कृष्ण हैं और वे अर्जुन को यह दिव्य ज्ञान प्रदान कर रहे हैं | इसी प्रकार जो लोग पूर्णतया कृष्णभावनाभावित हैं, उन्हीं से प्रकृति के तीनों गुणों के कार्यों से इस ज्ञान को सीखना होता है | अन्यथा मनुष्य का जीवन कुमार्ग में चला जाता है | प्रामाणिक गुरु के उपदेश से जीव अपनी आध्यात्मिक स्थिति, अपने भौतिक शरीर, अपनी इन्द्रियाँ, तथा प्रकृति के गुणों के अपनी बद्धावस्था होने के बारे में जान सकता है | वह इन गुणों की जकड़ में होने से असहाय होता है लेकिन अपनी वास्तविक स्थिति देख लेने पर वह दिव्य स्तर को प्राप्त कर सकता है, जिसमें आध्यात्मिक जीवन के लिए अवकाश होता है | वस्तुतः जीव विभिन्न कर्मों का कर्ता नहीं होता | उसे बाध्य होकर कर्म करना पड़ता है, क्योंकि वह विशेष प्रकार के शरीर में स्थित रहता है, जिसका संचालन प्रकृति का कोई गुण करता है | जब तक मनुष्य को किसी आध्यात्मिक मान्यता प्राप्त व्यक्ति की सहायता नहीं मिलती, तब तक वह यह नहीं समझ सकता कि वह वास्तव में कहाँ स्थित है | प्रामाणिक गुरु की संगति से वह अपनी वास्तविक स्थिति समझ सकता है और उसे समझ लेने पर, वह पूर्ण कृष्णभावनामृत में स्थिर हो सकता है | कृष्णभावनाभावित व्यक्ति कभी भी प्रकृति के गुणों के चमत्कार से नियन्त्रित नहीं होता | सातवें अध्याय में बताया जा चूका है कि जो कृष्ण की शरण में जाता है, वह प्रकृति के कार्यों से मुक्त हो जाता है | जो व्यक्ति वस्तुओं को यथारूप में देख सकता है, उस पर प्रकृति का प्रभाव क्रमशः घटता जाता है |

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