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श्लोक 14.18

ऊर्ध्वं गच्छन्ति सत्त्वस्था मध्ये तिष्ठन्ति राजसा: ।
जघन्यगुणवृत्तिस्था अधो गच्छन्ति तामसा: ॥ १८ ॥

ऊर्ध्वम् - ऊपर; गच्छन्ति - जाते हैं; सत्त्व-स्थाः - जो सतोगुण में स्थित हैं; मध्ये - मध्य में; तिष्ठन्ति - निवास करते हैं; राजसाः - रजोगुणी; जघन्य - गर्हित; वृत्ति-स्थाः - जिनकी वृत्तियाँ या व्यवसाय; अधः - नीचे, निम्न; गच्छन्ति - जाते हैं; तामसाः - तमोगुणी लोग |

भावार्थ

भगवान् ने कहा - अब मैं तुमसे समस्त ज्ञानों में सर्वश्रेष्ठ इस परम ज्ञान को पुनः कहूँगा, जिसे जान लेने पर समस्त मुनियों ने परम सिद्धि प्राप्त की है |

तात्पर्य

इस श्लोक में तीनों गुणों के कर्मों के फल को स्पष्ट रूप से बताया गया है । ऊपर के लोकों या स्वर्गलोकों में, प्रत्येक व्यक्ति अत्यन्त उन्नत होता है । जीवों में जिस मात्रा में सतोगुण का विकास होता है, उसी के अनुसार उसे विभिन्न स्वर्ग-लोकों में भेजा जाता है । सर्वोच्च-लोक सत्य-लोक या ब्रह्मलोक है,जहाँ इस ब्रह्माण्ड के प्रधान व्यक्ति, ब्रह्माजी निवास करते हैं । हम पहले ही देख चुके हैं कि ब्रह्मलोक में जिस प्रकार जीवन की आश्चर्यजनक परिस्थिति है, उसका अनुमान करना कठिन है । तो भी सतोगुण नामक जीवन की सर्वोच्च अवस्था हमें वहॉं तक पहुँचा सकती है ।

रजोगुण मिश्रित होता है । यह सतो तथा तमोगुण के मध्य में होता है । मनुष्य सदैव शुद्ध नहीं होता,लेकिन यदि वह पूर्णतया रजोगुणी हो, तो वह इस पृथ्वी पर केवल राजा या धनि व्यक्ति के रूप में रहता है । लेकिन गुणों का मिश्रण होते रहने से वह नीचे भी जा सकता है । इस पृथ्वी पर रजो या तमोगुणी लोग बलपूर्वक किसी मशीन के द्वारा उच्चतर-लोकों में नहीं पहुँच सकते । रजोगुण में इसकी सम्भावना है कि अगले जीवन में कोई प्रमत्त हो जाये ।

यहाँ पर निम्नतम गुण, तमोगुण, को अत्यन्त गर्हित (जघन्य) कहा गया है । अज्ञानता (तमोगुण) विकसित करने का परिणाम अत्यन्त भयावह होता है । यह प्रकृति का निम्नतम गुण है । मनुष्य-योनि से नीचे पक्षियों, पशुओं, सरीसृपों, वृक्षों आदि की अस्सी लाख योनियाँ हैं, और तमोगुण के विकास के अनुसार ही लोगों को ये अधम योनियाँ प्राप्त होती रहती हैं । यहाँ पर तामसाः शब्द अत्यन्त सार्थक है । यह उनका सूचक है, जो उच्चतर गुणों तक ऊपर न उठ कर निरन्तर तमोगुण में ही बने रहते हैं । उनका भविष्य अत्यन्त अंधकारमय होता है ।

तमोगुणी तथा रजोगुणी लोगों के लिए सतोगुणी बनने का सुअवसर है और यह कृष्णभावनामृत विधि से मिल सकता है । लेकिन जो इस सुअवसर का लाभ नहीं उठाता, वह निम्नतर गुणों में बना रहेगा ।

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