वेदाबेस​

श्लोक 1 . 13

ततः शङ्खाश्च भेर्यश्च पणवानकगोमुखाः ।
सहसैवाभ्यहन्यन्त स शब्दस्तुमुलोऽभवत् ॥ १३ ॥

ततः – तत्पश्चात्; शङखाः – शंख; भेर्यः – बड़े-बड़े ढोल, नगाड़े; च – तथा; पणव-आनक – ढोल तथा मृदंग; गोमुखाः – शृंग; सहसा – अचानक; एव – निश्चय ही; अभ्यहन्यन्त – एकसाथ बजाये गये; सः – वह; शब्दः – समवेत स्वर; तुमुलः – कोलाहलपूर्ण; अभवत् – हो गया | सः — that; śabdaḥ — combined sound; tumulaḥ — tumultuous; abhavat — became.

भावार्थ

तत्पश्चात् शंख, नगाड़े, बिगुल, तुरही तथा सींग सहसा एकसाथ बज उठे | वह समवेत स्वर अत्यन्त कोलाहलपूर्ण था |

बेस- पूरे विश्व में वैदिक संस्कृति सिखाने का लक्ष्य

©2020 BACE-भक्तिवेदांत सांस्कृतिक और शैक्षणिक संस्था

www.vedabace.com यह वैदिक ज्ञान की विस्तृत जानकारी है जो दैनिक साधना, अध्ययन और संशोधन में उपयोगी हो सकती है।

अधिक जानकारी के लिए कृपया संपर्क करें - info@vedabace.com