श्लोक 18.67
न चाशुश्रूषवे वाच्यं न च मां योऽभ्यसूयति ॥ ६७ ॥
idam — this; te — by you; na — never; atapaskāya — to one who is not austere; na — never; abhaktāya — to one who is not a devotee; kadācana — at any time; na — never; ca — also; aśuśrūṣave — to one who is not engaged in devotional service; vācyam — to be spoken; na — never; ca — also; mām — toward Me; yaḥ — anyone who; abhyasūyati — is envious.
भावार्थ
यह गुह्यज्ञान उनको कभी भी न बताया जाय जो न तो संयमी हैं, न एकनिष्ठ, न भक्ति में रत हैं, न ही उसे जो मुझसे द्वेष करता हो |
तात्पर्य
जिन लोगों ने तपस्यामय धार्मिक अनुष्ठान नहीं किये, जिन्होंने कृष्णभावनामृत में भक्ति का कभी प्रयत्न नहीं किया, जिन्होंने किसी शुद्धभक्त की सेवा नहीं की तथा विशेषतया जो लोग कृष्ण को केवल ऐतिहासिक पुरुष मानते हैं, या जो कृष्ण की महानता से द्वेष रखते हैं, उन्हें यह परम गुह्यज्ञान नहीं बताना चाहिए | लेकिन कभी-कभी यह देखा जाता है कि कृष्ण से द्वेष रखने वाले आसुरी पुरुष भीकृष्ण की पूजा भिन्न प्रकार से करते हैं और व्यवसाय चलाने के लिए भगवद्गीता का प्रवचन करने का धंधा अपना लेते हैं |लेकिन जो सचमुच कृष्ण को जानने का इच्छुक हो उसे भगवद्गीता के ऐसे भाष्यों से बचना चाहिए | वास्तव में कामी लोग भगवद्गीता के प्रयोजन को नहीं समझ पाते | यदि कोई कामी भी न हो और वैदिक शास्त्रों द्वारा आदिष्ट नियमों का दृढ़तापूर्वक पालन करता हो, लेकिन यदि वह भक्त नहीं है, तो वह कृष्ण को नहीं समझ सकता | और यदि वह अपने को कृष्णभक्त बताता है, लेकिन कृष्णभावनाभावित कार्यकलापों में रत नहीं रहता, तब भी वह कृष्ण को नहीं समझ पाता | ऐसे बहुत से लोग हैं, जो भगवान् से इसलिए द्वेष रखते हैं, क्योंकि उन्होंनेभगवद्गीता में कहा है कि वे परम हैं और कोई न तो उनसे बढ़कर, न उनके समान है | ऐसे बहुत से व्यक्ति हैं, जो कृष्ण से द्वेषरखते हैं | ऐसे लोगों को भगवद्गीता नहीं सुनाना चाहिए, क्योंकि वे उसे समझ नहीं पाते | श्रद्धाविहीन लोग भगवद्गीतातथा कृष्ण को नहीं समझ पाएँगे | शुद्धभक्त से कृष्ण को समझे बिना किसी को भगवद्गीता की टीका करने का साहस नहीं करना चाहिए |
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