वेदाबेस​

श्लोक 1 . 27

तान्समीक्ष्य स कौन्तेयः सर्वान्बन्धूनवस्थितान् ।
कृपया परयाविष्टो विषीदन्निदमब्रवीत् ॥ २७ ॥

तान् – उन सब को; समीक्ष्य – देखकर; सः – वह; कौन्तेयः – कुन्तीपुत्र; सर्वान् – सभी प्रकार के; बन्धून् – सम्बन्धियों को; अवस्थितान् – स्थित; कृपया – दयावश; परया – अत्यधिक; आविष्टः – अभिभूत; विषीदन् – शोक करता हुआ; इदम् – इस प्रकार; अब्रवीत् – बोला; सः — he; kaunteyaḥ — the son of Kuntī; sarvān — all kinds of; bandhūn — relatives; avasthitān — situated; kṛpayā — by compassion; parayā — of a high grade; āviṣṭaḥ — overwhelmed; viṣīdan — while lamenting; idam — thus; abravīt — spoke.

भावार्थ

जब कुन्तीपुत्र अर्जुन ने मित्रों तथा सम्बन्धियों की इन विभिन्न श्रेणियों को देखा तो वह करुणा से अभिभूत हो गया और इस प्रकार बोला |

बेस- पूरे विश्व में वैदिक संस्कृति सिखाने का लक्ष्य

©2020 BACE-भक्तिवेदांत सांस्कृतिक और शैक्षणिक संस्था

www.vedabace.com यह वैदिक ज्ञान की विस्तृत जानकारी है जो दैनिक साधना, अध्ययन और संशोधन में उपयोगी हो सकती है।

अधिक जानकारी के लिए कृपया संपर्क करें - info@vedabace.com